जीवन परिचय biography: Surdas
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Sunday, 6 June 2021

Surdas ka jivan parichay | surdas ke pad

June 06, 2021 0
Surdas ka jivan parichay | surdas ke pad

 Surdas ka jivan parichay (सूरदास के दोहे)



सूरदास का जन्म

1478-1583 ई० (१४७८ ई.-१५८३ ई.)



सूरदास का जन्मसन 1478 ई०
जन्म स्थान
सीही नामक ग्राम में

माता-पिता
अज्ञात
सूरदास के गुरुरामानंद
प्रमुख रचनाएँसूरसागर, सुरसारवाली, साहित्य लहरी

सूरदास की मृत्युसन 1583 ई०

पारसोली नामक ग्राम


कृष्ण भक्त शिरोमणि, स्वामी बल्लभाचार्य के पट्ट शिष्य, अष्टछाप के कवियों में अग्रगण्य सूरदास का जन्म 1478 ई. (विक्रमी संवत 1535) में 'सीही ग्राम में पण्डित रामदास सारस्वत के घर हुआ था और वे 1583 ई. (वि. सं. 1840) में 'पारसोली' में गोलोकवासी हो गये। सूरदास को कुछ लोग जन्मान्ध मानते हैं, किन्तु काव्य जगत में उनका सूक्ष्म चित्रण एवं बाल सुलभ घेष्टाओं का विशद वर्णन पढ़कर लगता है कि वे जन्मान्ध नहीं थे। संभवतः उन्होंने बाद में दृष्टि खो दी हो। किंवदन्ती है कि एक बार वे कुएं में गिर गये थे और उनके इष्ट भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें कुएँ से निकाला तो सूरदास ने कहा था-


"बाँह छुड़ाये जात हो, निवल जान के मोहि।
हिरवय से जब जाओगे, सबल जानिहीं तोहि।।"


यह भी कहा जाता है कि विल्वमंगल ही सूरदास थे। वे गऊघाट मथुरा में रहते थे।
सूरदास, वल्लभाचार्य जी द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्ग (पोषणं तदनुग्रहः अर्थात् भगवान के अनुग्रह से ही भक्ति का पोषण होता है) के सशक्त हस्ताक्षर थे।


सूरदास की रचनाएँ

उनकी तथाकथित १६ कृतियों में मात्र तीन कृतियाँ-(१) सूरसागर, (२) सूरसारावली, (३) साहित्य लहरी ही प्रामाणिक मानी गई हैं उनमें भी 'सूरसागर' ही श्रेष्ठ है। 'सूरसागर' में बिनय के पद से लेकर 'श्रीमद्भागवत' के देशम स्कन्ध पर आधारित पद हैं जिनकी संख्या सवा लाख कही जाती है। कुछ लोग इन पदों की संख्या
60 हजार ही मानते हैं, किन्तु डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा मात्र 4132 पद ही सूरदास के सूरसागर में मानते हैं।
सूरदास ने वैसे तो सभी रसों का वर्णन किया है, किन्तु उन्होंने शृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग, वियोग एवं वात्सल्य रस का मनोयोग से चित्रण किया है। 


वात्सल्य रस सम्राट् सुुरदास ही थे। बाल मनोविज्ञान के ये अदभुत ज्ञाता थे। बिभिन्न अलंकारी, शब्द शक्त्तियों व मनोहर शैली का सहारा लेकर वे पूर्णत्व को प्राप्त हो चुके थे तभी तो उनके विषय में कहा गया है- 

'सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास' । हिन्दी साहित्य में ब्रजभाषा काव्य का प्रथम रचयिता सूर को माना जाता है। उन्होंने वर्ण्य विषयानुसार विभिन्न राग-रागिनियों में बँधी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। वे महान् संगीतकार भी थे। निश्चय ही सूर ब्रजभाषा के बेजोड़ कवि हैं तथा हिन्दी साहित्य में अद्विती है।



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